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श्रीराम की नगरी में ‘चालान राज’ के बहाने लूटतंत्र का उभार

*नो पार्किंग नहीं, ये है नो-विवेक नीति!*

 

*भगवान के नाम पर जुटी भीड़ को एमएस कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने बनाया ‘कमाई का साधन’*

*समीर शाही*
अयोध्या।
योगी आदित्यनाथ जिस अयोध्या को दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी बना रहे हैं, उसी अयोध्या में आज कुछ अधिकारी उसे ‘चालान राजधानी’ में बदलने पर तुले हैं। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की भव्य कल्पना को ज़मीनी भ्रष्टाचार ने जकड़ लिया है, और नगर निगम अयोध्या उसमें अगुवाई करता दिख रहा है। श्रीराम की पवित्र भूमि पर जहां श्रद्धा होनी थी, वहां अब डर का पहरा है—डर गाड़ी खड़ी करने का, डर नियम न जानने का और सबसे बड़ा डर उस सिस्टम का, जो श्रद्धालु के जेब को शिकार समझ बैठा है।

“राम नाम सत्य है” की जगह अब अयोध्या की गलियों में नई ध्वनि गूंज रही है—”₹2000 चालान निश्चित है! आश्चर्य नहीं कि जिस शहर को योगी जी ने स्मार्ट बनाना चाहा, वहां के नगर निगम ने पहले चालान प्रिंटर स्मार्ट बनाया, फिर हर टायर पर उसकी छपाई शुरू कर दी। श्रद्धालु आते हैं रामलला के दर्शन करने, लेकिन पहले दर्शन होते हैं “एमएस कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड” के लॉक सिस्टम के। शहर में न कहीं बोर्ड, न कहीं चेतावनी, लेकिन वसूली में कोई चूक नहीं। लगता है मानो भगवान के नाम पर जुटी भीड़ को कुछ लोगों ने ‘कमाई का साधन’ मान लिया हो।

*निजी फर्म या परम लूटतंत्र?*
गोंडा की एक फर्म को मिली जिम्मेदारी पर किसी को एतराज नहीं होता अगर नियम साफ होते, लेकिन जब न बोर्ड हैं, न पारदर्शिता, तब यह सवाल उठता है—क्या यह व्यवस्था है या व्यवस्थित दोहन?

*योगी सरकार की धूमिल होती छवि*
बाबा विश्वनाथ की तरह योगी जी ने अयोध्या को भी एक चमकती आस्था नगरी बनाने का सपना देखा, लेकिन नगर निगम के कुछ अफसरों ने इस सपने में स्याही उड़ेल दी है। यह सिर्फ वसूली नहीं, यह आस्था का अपमान है। ये घटनाएं मोदी-योगी सरकार की उस ईमानदार छवि को आघात पहुंचा रही हैं, जिसे बनाने में वर्षों की तपस्या लगी।

नगर निगम चाहे जितनी चालान पर्चियां छाप ले, जनता के मन में छपी नाराजगी को मिटा नहीं सकता। अगर टायर लॉक करने में इतना हुनर है, तो अयोध्या की सड़कों के गड्ढे कब भरोगे साहब?”
शायद नगर निगम को लगता है कि श्रद्धालु दर्शन के साथ-साथ ‘दंड’ लेने भी आते हैं। योगी जी की प्रशासनिक साख को बचाने के लिए इस व्यवस्था पर तत्काल समीक्षा हो। श्रद्धालुओं के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश, पार्किंग सूचना बोर्ड, और सबसे ज़रूरी—एक मानवीय दृष्टिकोण।

Sameer Shahi

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