नाम में क्या रखा है… अगर नाम मौलवी अहमद उल्ला शाह का हो तो?

*कलम के कांटे से*
*अयोध्या की पवित्र भूमि पर एक बार फिर “नाम” को लेकर संग्राम छिड़ गया है।* अब कोई यह समझाए कि *एक शहीद का नाम, जो 1857 में अंग्रेजों की नींद हराम कर चुका था, आज 2025 में हमारे नेताओं की नींद क्यों उड़ा रहा है?*
*नगर निगम के महापौर जी को ज्ञापन मिला* उन्होंने *बड़ी सहजता से हामी भी भर दी* — *”हां, हां, नाम रख दीजिए… मौलवी साहब का ही रखिए…”।* *लेकिन जैसे ही यह नाम उनके दल के कुछ ‘अतिसंवेदनशील’ कानों तक पहुँचा, महापौर जी के चेहरे से वो सहज मुस्कान वैसे ही गायब हो गई जैसे चुनाव के बाद नेताजी के वादे।*
*अब सवाल ये है कि क्या शहादत का भी कोई धर्म होता है?*
या फिर नाम रखने से पहले पहले ये जांचना होगा कि *शहीद ने कुर्बानी दी थी या गलती?*
*विधायक जी चुप हैं।* शायद इसलिए *क्योंकि अगर बोले तो ‘राष्ट्रवादी’ कट्टर समर्थक नाराज़ होंगे, और अगर न बोले तो ‘इतिहास’ शर्मिंदा हो जाएगा।*
दरअसल, *असली संकट नाम पर नहीं, नीयत पर है।* अगर *कॉम्प्लेक्स का नाम “पंडित रघुनाथ तिवारी बाजार” रखा जाता, तो नगर निगम के दरवाजे पर शंख बजते और सोशल मीडिया पर बधाई की बाढ़ आ जाती।* लेकिन *मौलवी अहमद उल्ला शाह? अरे भइया, ये नाम तो वोट बैंक की गणित में फिट नहीं बैठता!*
यह विडंबना ही है कि *अंग्रेजों से लड़ने वाला मौलवी आज नेताओं की खामोशी से हार रहा है।*
*महापौर जी, विधायक जी और तमाम सियासी गणमान्य* — कृपया बताएं कि *क्या हम आज भी आज़ाद हैं या सिर्फ नाम बदलने में व्यस्त एक डरपोक लोकतंत्र हैं?*
कहावत है — *शेर की गुफा में रहकर बिल्ली की म्याऊं से डरना अच्छा नहीं लगता।*
पर यहां तो *शहीद के नाम से ही नेताओं की घिग्घी बंध जाती है!*