मिल्कीपुर के चुनावी परिदृश्य में अभी तो सपा भारी…
ओम प्रकाश सिंह, (स्वतंत्र पत्रकार) की प्रारंभिक समीक्षा
ना पासी ना ठाकुर बाभन…दूल्हा कौन तय करेंगी अति पिछड़ो/ पिछड़ो की तीन चार जातियां..
-ओम प्रकाश सिंह, (स्वतंत्र पत्रकार)
अयोध्या।
मिल्कीपुर विधानसभा को राजनीतिक रुप से भरी जवानी बेवा करने का इल्जाम सपा पर तो चस्पा होता ही है। यहां से विधानसभा के लिए निर्वाचित अपने विधायक अवधेश प्रसाद को उसने लोकसभा लड़ा दिया। जीत भी गए और सीट रिक्त हो गई। जो प्रारंभिक रुझान है उसके अनुसार मिल्कीपुर का दूल्हा तय करने में अति पिछड़ी जातियों की प्रमुख भूमिका होगी।
दूल्हा बनने की रेस में झोंकम झोंक है। सत्ता पक्ष से तो छोट मोट हर नेता गोल गुंबद पहुंचने का ख्वाब देख मैदान में गोड़धराई कर रहा है। भाजपा मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव जीतकर फैजाबाद लोकसभा हार का गम कम कर सकती है लेकिन इसके नेता अपने सत्ता वाले ऐंठ से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। मंत्रियों की फौज उतार दी गई है। क्षेत्र से रिपोर्ट है कि ये मंत्रीगण आम मतदाताओं से घुलमिल नहीं पा रहे। मठाधीशों के दुआरे ही बतकही करके, सब ओके है का संदेश ऊपर दिया जा रहा है। स्थानीय कार्यकर्ता मेकर की जगह कठपुतली बना दिए गए हैं। अधिकांश प्रभारी दूसरी विधानसभा से हैं। बैठक, फोटो, खबर तक कवायद हो रही है।
प्रभारी मंत्रियों के अलावा भी भाजपा के कई बड़े बड़े सूरमा मिल्कीपुर आ रहे हैं। इनके आने पर मैसेज कर दिया जाता है कि बीस पच्चीस लोग इकठ्ठा हो जाइए। मीटिंग होगी। चुनाव प्रचार कर रहे भाजपा के दर्जनों प्रत्याशी क्षेत्र छोड़ नेता जी लोगों की सुनते हैं। टिकट मांगने वालों में जो सीधे साधे हैं वो ऐसी बैठकों का शिकार हो जाते हैं। माहिर लोग क्षेत्र में विचरते रहते हैं। भाजपा व सरकार क्षेत्र में पैसे की रेलम पेल करके माहौल अपने पक्ष में करना चाहती है। इसका खदरबदर असर ही है। मिल्कीपुर का मतदाता अब खंडासा वाले मिथक से बाहर निकल चुका है। उसे भी समझ है कि वोट हमदर्द को करना है या अवसर वालों को।
कहने को तो विधानसभा में तीन ब्लाक हैं लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब से सवा दो ही। इन ब्लाकों में एक में भाजपा का जोर है तो दो में सपा का। बसपा हमेशा की तरह हाथी चाल में है। हाथी की चाल पर भी भाजपा की चुनावी गणित निर्भर करती है। दिशाओं के हिसाब से मिल्कीपुर के पूरब, उत्तर सपा तो दक्षिण, पश्चिम में भाजपा के ग्रह अभी ठीक दिखाई पड़ रहे हैं।
हिंदुस्तान के किसी भी चुनाव में जातीय फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मिल्कीपुर में सपा की ताकत पीडीए समीकरण है। पासी वोट ज्यादा हैं लेकिन दलित समाज के अन्य वोट भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। भाजपा सवर्णों की पार्टी मानी जाती है। मिल्कीपुर में इन्हें संभालने की चुनौती भी भाजपा के सामने है। चुनावी नगाड़ा बजने में समय है लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट यह है कि मिल्कीपुर में हार जीत का अंतर इस बार लोकसभा चुनावों की तरह रहने वाला है। अति पिछड़ी जातियां तय करेंगी कि मिल्कीपुर का दूल्हा कौन बनेगा।