1992 से रामलीला का अनवरत मंचन कर रही मयूर रामलीला समिति

“उलट पलटि लंका सब जारी, कूदि परा पुनि सिंधु मंझारी…”

-बाली बध व लंका दहन देखे गूंजे जय श्रीराम के उदघोष

तारुन अयोध्या।
विकास खण्ड तारुन क्षेत्र में सर्वशक्ति दुर्गा पूजा समिति एवं मयूर रामलीला समिति ने तारुन ब्लाक मुख्यालय के सामने 30 साल पहले वर्ष 1992 में रामलीला की शुरुआत की थी जब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था। इस रामलीला की खास बात यह है कि सभी कलाकर स्थानीय होते है। रामलीला समिति से जुड़े आनंद कुमार सिंह ने बताया कि मयूर रामलीला समिति की स्थापना उनके स्वर्गीय पिता जी बाबू जगदीश सिंह व राम किशोर वर्मा जी के प्रेरणा से हुई थी। शुरुआत में रामलीला समिति के सदस्य ही किरदार निभाते थे। इसके बाद मुहल्ले व पड़ोस में रहने वाले युवक व युवतियों को इससे जोड़ा गया। उनके अनुसार रामलीला में बाहर से आये कलाकरों के साथ ही स्थानीय युवाओं को भी अपना हुनर दिखाने का पूरा मौका मिलता है।

रामलीला के डायरेक्टर आनंद सिंह बताते है कि 1992 में पिता जी ने जब इस रामलीला समिति की स्थापना की तो सिर्फ लालगंज में एक जगह रामलीला होती थीं। 30 साल पहले मयूर रामलीला समिति बनाकर साल 1992 से रामलीला महोत्सव की शुरुआत हुई।समिति के अध्यक्ष शिव प्रसाद गुप्ता, उपाध्यक्ष राम नयन गौड़,कोषाध्यक्ष मुन्ना लाल निषाद,प्रबंधक अरुण कुमार सिंह,मंत्री जगत नारायण सिंह,सह संचालक पंकज निषाद है। जबकि रामलीला के संयोजक के रूप में अजय प्रताप सिंह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन बखूबी करते चले आ रहे। समिति के सदस्यों ने बताया कि 30 साल पहले रामलीला का बजट महज 50 हजार रुपये था, जो आज बढ़कर लाखों रुपये हो गया है। ड्रेस, मेकअप, लाइट, म्यूजिक, स्टेज, राम व रावण परिवार के पुतले और अन्य चीजों का बजट महंगाई बढ़ने की वजह से बढ़ा है।

 

वहीं डारेक्टर आनन्द सिंह ने बताया कि समिति से जुड़े राजबहादुर (रावण)अमित कुमार गुप्ता (राम) राहुल गुप्ता(लक्ष्मण) आनंद कुमार सिंह (दशरथ) अमरेंद्र सिंह(हनुमानजी) रामसुंदर विकल मेकअप मैन के साथ परशुराम की भूमिका निभाते है। सभी रोल करने में एक्सपर्ट हैं। समिति द्वारा रामलीला में समाज को स्वच्छता का संदेश दिया जा रहा है। लोगों से अपील की जा रही है कि अपने आसपास की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और बुराई पर अच्छाई के पर्व को खुशी के साथ मनाएं।

 

तारुन की श्रीरामलीला में सोमवार को सुग्रीव से मित्रता व लंका दहन का मंचन हुआ। सीता की खोज में निकले हनुमान ने लंकापुरी की रक्षिका लंकिनी का वध करके नगर में प्रवेश किया, जहां उनका विभीषण से मिलन हुआ। हनुमान ने विभीषण से सीता का पता जानकर अशोक वाटिका में प्रवेश किया। जहां सीता के सामने श्रीराम की दी हुई मुद्रिका को डालकर अपना परिचय दिया। फिर सीता की आज्ञा से अशोक वाटिका के फल खाने के बहाने हनुमान ने वृक्षों को तोड़ना शुरू कर दिया और रक्षकों को मारकर भगा दिया। ये सुनकर रावण अपने पुत्र अक्षय कुमार को सैनिकों के साथ वहां भेजते हैं, किंतु हनुमान उसका वध कर देते हैं। फिर रावण ज्येष्ठ पुत्र मेघनाद को भेजता है। श्रीराम का कार्य करने की इच्छा से हनुमान स्वयं को मेघनाद के बंधन में स्वीकार कर रावण के समक्ष पहुंचते हैं। जहां रावण व हनुमान के बीच रोचक संवाद होता है। रावण के आदेश से हनुमान की पूंछ में तेल युक्त कपड़े बांधकर आग लगा देते हैं। हनुमान इससे लंकापुरी को ही जला डालते हैं। अंत में जानकी को समझाकर उनसे चूड़ामणि पहचान स्वरूप प्राप्त कर श्रीराम के पास प्रस्थान करते हैं।

Sameer Shahi

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