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गलत तथ्यों के आधार पर मांझा जमथरा गांव के किसानों को गुमराह कर रहा एडीए-शरद पाठक बाबा

प्रशासनिक अफसरों की करतूत की वजह से अयोध्या हारी बीजेपी-बाबा

माझा जमथरा लैंड केस को लेकर जनांदोलन शुरू होने की आहट

अयोध्या।
समाजसेवी वरिष्ठ बीजेपी नेता शरद पाठक बाबा ने एक पत्रकारवार्ता कर अयोध्या विकास प्राधिकरण पर गलत तथ्य पेश करके अयोध्या वासियों को लगातार गुमराह करने का आरोप लगाया है। बाबा का कहना है कि सन 1528 से लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट का 9 नवंबर 2019 को फैसला आने तक जिस प्रकार श्री राम जन्मभूमि मंदिर ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी, आज उसी प्रकार श्री राम जन्मभूमि मंदिर और गुप्तार घाट के बीच सरयू नदी के पावन तट पर स्थित एक छोटा सा गांव माझा जमथरा और वहां के किसान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। इसका कारण और कोई नहीं अयोध्या विकास प्राधिकरण और अयोध्या के जिला प्रशासन की अनदेखी है। श्री पाठक ने कहा कि अधिकारियों के इसी प्रकार के तानाशाही रवैये और अनदेखी के चलते, प्रधानमंत्री मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी जी की छवि को अयोध्या में धूमिल करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। जिसका नुकसान बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भुगतना पड़ा है और यही हालात रहे तो आने वाले चुनावों में भी बीजेपी को अफसरों की हरकतों का परिणाम भुगतना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि माझा जमथरा में नवनिर्मित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के परिसर में नियमों की अनदेखी करते हुए और बिना मानचित्र स्वीकृत कराए तीन मंजिला, दो भवनों का निर्माण पूरा किया जा चुका है। और निजी भू स्वामी अगर झोपड़ी भी बनाना चाहें तो अयोध्या विकास प्राधिकरण अपने ही नियमों और महायोजना 2031 के प्रावधानों को दरकिनार करके, गलत तथ्यों का हवाला देते हुए कार्यों को रुकवा देता है।

बैक फुट पर आया था एडीए प्रशासन
ऐसा ही एक प्रयास अयोध्या विकास प्राधिकरण द्वारा जुलाई 2022 में मांझा जमथरा की संपूर्ण रजिस्ट्री और बैनामे पर रोक लगाकर किया गया था। जिसके खिलाफ कई किसानों और निजी भू स्वामियों ने माo उच्च न्यायालय की शरण ली। इसके बाद माo उच्च न्यायालय ने सही तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए रजिस्ट्री पर लगी रोक को हटा लिया था। और अयोध्या विकास प्राधिकरण को मुंह की खानी पड़ी। परंतु अयोध्या विकास प्राधिकरण आज भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अगर झूठे तथ्य पेश करने की प्रतिस्पर्धा कराई जाए तो अयोध्या विकास प्राधिकरण का नाम अव्वल रहेगा।

*अयोध्या विकास प्राधिकरण का झूठा तथ्य*
1: मांझा जमथरा डूब क्षेत्र / बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि प्राधिकरण के महायोजना 2031 में यह क्षेत्र बाढ़ प्रभावित क्षेत्र नहीं है।
*झूठा तथ्य 2:* मांझा जमथरा हरित पट्टी (ग्रीन बेल्ट) है। विकास प्राधिकरण द्वारा प्रचारित किया गया यह तथ्य भी गलत है। महायोजना 2031 किसी भी मुख्य मार्ग, स्टेट हाईवे, नेशनल हाईवे आदि के किनारे और समानांतर केवल 7, 15, और 30 मीटर तक की जमीन को पेड़ पौधे लगाने के लिए हरित पट्टी के रूप में विकसित किया जाता है।
*झूठा तथ्य 3:* यहां किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं किया जा सकता। वर्तमान में मांझा जमथरा का भू उपयोग पार्क एंड ओपन एरिया के अंतर्गत इस स्थान पर पिकनिक स्पॉट, स्टेडियम, खेल प्रशिक्षण केंद्र, कारवां पार्क, स्विमिंग पूल, यात्रियों के कम अवधि के लिए ठहरने की व्यवस्था आदि निर्माण किए जा सकते हैं।

*झूठा तथ्य 4:* यहां का भू उपयोग परिवर्तन कभी नहीं हो सकता। जबकि 30 मार्च 2024 को जारी की गई सार्वजनिक सूचना पत्रांक 1651/ अo विo प्राo – नियोo 2023 – 24 के माध्यम से अयोध्या विकास प्राधिकरण ने स्वयं घोषित किया कि प्राधिकरण द्वारा पूरे 2,400 (दो हजार चार सौ) बिस्सा जमीन का भू उपयोग परिवर्तन गाटा संख्या 57 मि. में प्रस्तावित है।

माझा जमथरा लैंड केस का नेतृत्व कर रहे समाजसेवी शरद पाठक का कहना है कि अभी हाल ही में टाटा समूह को मांझा जमथरा में ही 80 करोड़ से भी अधिक मालियत की 800 बिस्सा जमीन को मात्र 1 रुपए में 90 साल की लीज पर दे दिया गया है। अदानी ग्रुप ने भी मांझा जमथरा में 80 बिस्सा जमीन की रजिस्ट्री करा ली है। जिंदल ग्रुप को भी 207 करोड़ की परियोजना के लिए जमीन दे दिया गया है। गुप्तार घाट के निकट मांझा जमथरा में ही एक निजी कंपनी के साथ टेंट सिटी का निर्माण किया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या अयोध्या विकास प्राधिकरण सिर्फ उद्योगपतियों के लिए ही कार्य करता रहेगा, और अयोध्यावासियों और किसानों के साथ दोहरा मापदंड अपनाते हुए उन्हें विकास से वंचित रखेगा? कहीं इसके पीछे सुविधा शुल्क की संस्कृति तो नहीं?

उन्होंने कहा कि मांझा जमथरा में जब किसानों की जमीन चिन्हित करने की बात होती है, तो प्रशासनिक अधिकारियों को सांप सूंघ जाता है। और जब कोई सरकारी योजना या किसी उद्योगपति को जमीन चिन्हित करना हो तो किसी भी स्थान को नजूल की जमीन बताकर पीढ़ियों से खेती कर रहे किसानों को और भूस्वामियों को वहां से उजाड़ दिया जाता है। और जमीन बड़ी बड़ी परियोजनाओं के लिए चिन्हित कर ली जाती है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जब परियोजनाओं के लिए जमीन चिन्हित की जा रही है, तो किसानों और भूस्वामियों की निजी भूमि प्रशासन द्वारा चिन्हित क्यों नहीं की जा रही है? गुप्तारघाट पर जिन दुकानदारों ने कई पीढ़ियों से अयोध्या में आने वाले श्रद्धालुओं को भोजन पानी की व्यवस्था कराई, प्रशासन द्वारा उन्हीं दुकानदारों को उस स्थान से हटने का दबाव बनाया जा रहा है। उनको नई दुकानें देने का वादा किया गया था। नई दुकानों का निर्माण भी हुआ। परंतु जब आवंटन का समय आया, तो गुप्तार घाट पर उन दुकानों को भारी कीमतों पर नीलाम कर दिया गया। जिससे उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इन्हें पुनर्वासित किया जाय। इसी प्रकार दर्शन नगर के समीप एयरो सिटी के नाम पर अयोध्यावासियों को गुमराह किया गया। यदि आगे भी ऐसा ही चलता रहा और प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा तानाशाही रवैया ही रखा गया, तो आने वाले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

Sameer Shahi

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