कलम के कांटे से

अन्नदाता की खाद और अफसरों की ‘खादखोरी’

 

कलम के कांटे से
अयोध्या।
प्रदेश सरकार ने कहा था – *किसानों को खाद की कोई कमी नहीं होगी!*
और *अयोध्या ने तो मान लिया था कि प्रभारी मंत्री स्वयं कृषि मंत्री हैं, तो क्या मजाल कि खाद की एक पुड़िया भी इधर से उधर हो जाए!*
लेकिन जो हुआ वो वही पुरानी कहावत है – *ऊपर का गन्ना दिखता मीठा है, नीचे से खोखला होता है।*

धान की रोपाई शुरू हुई और *खाद ऐसे गायब हुई जैसे नेताओं की नैतिकता चुनाव के बाद!*
*सहकारी समितियों के गोदामों में सिर्फ ताले बचे हैं और ताले भी ऐसे कि जैसे सदियों से किसी खंडहर का दरवाजा बंद कर रखा हो।*
किसान पहुंचे तो मिला बोर्ड – *खाद समाप्त हो गई है, कल आना।*
*कल गए, परसों गए, हफ्ता बीता, खाद नहीं आई।*
*लेकिन चमत्कार देखिए*
जिस खाद का अस्तित्व समितियों में नहीं है, *वही खाद निजी दुकानों में इफरात से बिक रही है!*

*अब सवाल उठता है* – ये *निजी दुकानदार कौन सा जादू-टोना करते हैं?*
*क्या इनके पीछे ‘श्री श्री खाद उत्पादन तंत्र’ है?*
या *इन्होंने घर के पिछवाड़े में कोई गुप्त खाद कारखाना लगा रखा है?*
नहीं जी!
यह *सब उसी “सिंडीकेट खाद-तंत्र” की मेहरबानी है जिसमें सहकारी समिति से पहले ही सरकारी दर पर खाद खरीद ली जाती है* – *वो भी ट्रॉली भर कर, और वो भी ‘चहेते’ बड़े किसानों द्वारा, जिनकी राजनीति में पकड़ किसी ट्रैक्टर के हैंडल से ज्यादा मजबूत है।*

*अब छोटे किसान बेचारे क्या करें?*
वो या तो *लाइन में खड़े रहकर “खाली” बोर्ड पढ़ते हैं या निजी दुकान पर जाकर वही खाद तीन गुने दाम पर खरीदते हैं* – वो भी शर्तों के साथ!
*खाद लेनी है तो साथ में जिंक सल्फर भी लेना पड़ेगा।*
*न लो तो “न उर्वरक मिलेगा, न उधार। चलो निकलो दुकान से!*

*किसान सोचते हैं* – *हम खेती कर रहे हैं या रंगदारी दे रहे हैं?*
और *उधर कृषि विभाग के अधिकारी जी पूरी कमीशन योग साधना में लीन हैं।*
दिन में AC की ठंडी हवा, और माथे पर पसीना नहीं, केवल “कृपया धैर्य रखें” का गूढ़ प्रशासनिक पाठ।

*जब रालोद नेता राम सिंह पटेल* ने *जिला कृषि अधिकारी से मिले* तो साहब ने भी दिखाया *‘शासकीय सजगता*
“हां, *हां दुकानदारों को बोलते हैं कि किसानों को लूटो, पर थोड़ा धीरे।*
*अब सवाल ये कि सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधि क्यों चुप हैं?*
*क्या उन्हें भी ‘खादियान शांति पुरस्कार’ मिल गया है?*

जो भी हो, हाल फिलहाल अयोध्या में हाल यह है कि
*धान तो दूर की बात है, किसानों के भाग्य में सिर्फ अफसरों के भाषण, दुकानदारों की शर्तें और नेताओं की चुप्पी ही उग रही है!*

*कहते हैं* –
“अन्नदाता भगवान के बराबर होता है।” पर *शायद ये ‘भगवान’ अब सरकारी मशीनरी के ’कमीशन यज्ञ’ में आहुति देने के लिए ही पैदा हो रहे हैं।*

Sameer Shahi

Related Articles

Back to top button